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जानिए गणपति विसर्जन के पीछे की कहानी, क्या है विसर्जन का शुभ मुहूर्त

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गणपति विसर्जन के दिन भगवान गणेश को अगले साल फिर आने के वादे से विदा करते हैं। गणपति विसर्जन के दिन दिन पूरे हर्षोल्लास के साथ अपने देवता को समुद्र या नदी में विसर्जित करते हैं। बड़ी संख्या में भक्त सड़कों पर बहुत भव्यता और धूमधाम के साथ शोभायात्रा निकालते हैं। गणपति विसर्जन का त्यौहार महाराष्ट्र राज्य में भव्य पैमाने पर मनाया जाता है।

गणेश उत्सव की शुरुआत चतुर्थी तिथि से होता है और समापन चतुर्दशी तिथि के दिन होता है। अतः गणेशोत्सव भाद्रपद माह में दस दिनों तक मनाया जाता है।

उत्सव का अंतिम दिन गणेश विसर्जन होता है। तेलुगु भाषी प्रांतों में गणेश विसर्जन ‘विनायक निमंजनम’ नाम से अधिक प्रचलित है। गणेशोत्सव के ग्यारहवें दिन, भगवान गणेश की प्रतिमा को नदी, तालाब या समुद्र में विसर्जित कर दिया जाता है। चल-समारोह के साथ गणेश प्रतिमा को नदी या तालाब तक लाया जाता है।

भगवान गणेश की मूर्ति का विसर्जन गणेश चतुर्थी के दिन या उसके आगे के कई दिनों तक करते हैं। तो आइये जानते हैं कि गणेश विसर्जन कब है औऱ विसर्जन कब-कब किया जा सकता है।

गणेश चतुर्थी के दिन गणपति विसर्जन

चतुर्थी तिथि के दिन ही पूजा करने के बाद भी गणेश विसर्जन किया जा सकता है। हिन्दू धर्म में देवी-देवताओं की पूजा विधि का समापन विसर्जन या उद्यापन के साथ ही होता है।

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डेढ़ दिन बाद गणेश विसर्जन

गणेश विसर्जन चतुर्थी तिथि के अगले दिन या डेढ़ दिन बाद भी किया जाता है। इस दिन गणेश पूजा करने के बाद प्रतिमा को मध्याह्न के अगले पहर विसर्जित करते हैं। चूँकि, गणेश स्थापना चतुर्थी तिथि के दिन मध्याह्न में होती है, और विसर्जन, मध्याह्न के बाद, इसलिए इसे डेढ़ दिन में गणेश विसर्जन कहा जाता है।

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अनन्त चतुर्दशी के दिन विसर्जन

गणेश विसर्जन के लिए अनन्त चतुर्दशी तिथि सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। चतुर्दशी तिथि के दिन ही भगवान विष्णु का उनके अनन्त रूप में पूजन किया जाता जो चतुर्थी तिथि को और भी अधिक महत्वपूर्ण बनाती है। इस दिन भक्त भगवान विष्णु का व्रत भी रखते हैं। भगवान् की पूजा के समय हाथ में धागा बांधते हैं। ऐसी मान्यता है, की यह धागा भक्तों की हर संकट में रक्षा करता है।

गणपति विसर्जन क्यों किया जाता है (Ganesh Visarjan kyu kiya jata hai)

पुराणों के अनुसार महर्षि वेद व्यास आंख बंद करके गणेश चतुर्थी से महाभारत कथा प्रारंभ की और गणपति जी लगातार 10 दिन तक अक्षरश: लिखते जा रहे थे। दस दिन बाद जब व्यास जी ने कथा खत्म कर आंखें खोलीं तो पाया कि गणेश जी के लगातार काम करने से उनके शरीर का तापमान बहुत बढ़ गया है। व्यास जी ने गणेश जी के शरीर को ठंडक देने के लिए एक सरोवर में ले जा कर खूब डुबकी लगवाई, जिससे उनके शरीर तापमान समान्य हो गया।

साथ ही साथ उनके शरीर का तापमान कम करने के लिए व्यास जी ने उनके शरीर पर सुगंधित सौंधी माटी का लेप भी लगाया था। माटी सूख जाने के बाद जब उनका शरीर अकड़ने लगा तो उन्हें सरोवर में ले जाया गया ताकि माटी शरीर से अलग हो कर उन्हें ठंडक दे सकें। इसके बाद व्यास जी ने 10 दिनों तक गणपति जी को उनके पसंद का भोजन कराया था। इसी मान्यता के अनुसार प्रभु की पूजा के बाद उनका विसर्जन किया जाता है।

गणपति विसर्जन का महत्व क्या है? (Importance of Ganesh Visarjan)

माना जाता है कि गणेश विसर्जन के बाद वे अपने माता-पिता भगवान शिव और देवी पार्वती के पास वापस जाते हैं। यह गणेशजी की यात्रा को ‘अकार’ से ‘निराकार’ तक मनाता है। हिंदू धर्म में, यह एकमात्र त्योहार है जो सर्वशक्तिमान के दोनों रूपों – भौतिक रूप के साथ-साथ आध्यात्मिक रूप (निराकार) पर भी श्रद्धा व्यक्त करता है।

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