जन्माष्टमी (Janmashtami 2021) का पर्व 30 अगस्त को पड़ रहा है। Krishna Janmashtami त्योहार उत्तर भारत के साथ देश के कई हिस्सों में अलग अलग तरीकों से मनाया जाता है।
पौराणिक ग्रंथों के मतानुसार श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि के समय हुआ था। अत: भाद्रपद मास में आने वाली कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यदि रोहिणी नक्षत्र का भी संयोग हो तो वह और भी भाग्यशाली माना जाता है। इसे जन्माष्टमी के साथ साथ जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।
विषय सूची
जन्माष्टमी 2021 का शुभ मुहूर्त क्या है (Janmashtami kab hai)
30 अगस्त
निशिथ पूजा– 11:59 से 12:44
पारण– 05:57 सुबह (31 अगस्त) के बाद
रोहिणी समाप्त- रोहिणी नक्षत्र रहित जन्माष्टमी
अष्टमी तिथि आरंभ – 06:39 सुबह (30 अगस्त)
अष्टमी तिथि समाप्त – 09:44 सुबह (31 अगस्त)
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जन्माष्टमी व्रत का महत्व (Importance of Janmashtami in Hindi)
हिन्दू धर्म में इस दिन व्रत रखने का बहुत महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन व्रत रखने से घर में सुख-समृधि आती और शांति बनी रहती है।
स्कंद पुराण की माने तो जो व्यक्ति सब जानते हुए भी इस दिन व्रत नहीं रखता, उसका जन्म जंगल में सांप के रूप में होता है। इसके विपरीत जो इस व्रत को पूरे विधि-विधान और आस्था के साथ रखता है, उसके घर में लक्ष्मी बनी रहती है और सारे बिगड़े काम बन जाते हैं।
जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है (Why Janmashtami is Celebrated in Hindi)
असुरों का नाश, सत्य और धर्म की स्थापना करने के द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लिया। भगवान श्री विष्णु ने कंस के आतंक को समाप्त करने के लिए कृष्ण के रूप में माता देवकी के गर्भ से भादो माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की मध्यरात्रि (आधी रात) में जन्म लिया। फिर बड़े होकर कंस का नाश किया था। तब से हर वर्ष धूमधाम से जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है।
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कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा विधि (Janmashtami Puja Vidhi in hindi )
जन्माष्टमी के तीनों समय यानी सुबह, दोपहर, शाम पूजा की जाती है। तो आइये जानते है तीनों टाइम की पूजा विधि…
सुबह की पूजाविधि
सुबह संकल्प लेने के बाद विधि पूर्वक भगवान कृष्ण के बाल रूप की पूजा व ध्यान करें। इस दिन मन में बुरे विचार न लाएं। पूजा करने के बाद 108 बार मन्त्र का जाप करें। मंत्र के जप से अनेक प्रकार की मनोकामना पूरी होने लगती है। मंत्र –
ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये॥
दोपहर की पूजाविधि
दोपहर के समय काले तिल को पानी में डालकर माता देवकी जी स्नान के लिए ‘सूतिकागृह’ नियत करें। भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। इसके बाद विधि-विधान से पूजन अर्चना करें। पूजन पूर्ण होने के बाद निम्न मंत्र से पुष्पांजलि अर्पण करें। मंत्र
‘प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः।
वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः।
सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं में गृहाणेमं नमोऽस्तुते।।
रात की पूजाविधि
रात को मध्य रात्रि में ठीक 12 बजे किसी कृष्ण मंदिर में जन्म समय से पूर्व कृष्ण भजन कीर्तन करने के बाद नियत समय पर पंचामृत से बाल गोपाल को स्नान कराकर विधिवत पूजन करें। कृष्ण जन्म की आरती करने के बाद उन्हें माखन मिश्री एवं पंजीरी का भोग लगावें। अब व्रत उपवास करने वाले व्रती कान्हा जी को भोग लगाने के बाद स्वयं भी भोग प्रसाद ग्रहण करके उपवास तोड़े।
जन्माष्टमी व्रत विधि (Krishna Janmashtami Vrat Vidhi in Hindi)
भविष्यपुराण के अनुसार जन्माष्टमी व्रत (Krishna Janmashtami) के दिन मध्याह्न में स्नान कर एक सूत घर (छोटा सा घर) बनाना लें। उसे पद्मरागमणि और वनमाला आदि से सजा लें। इसके दीवारों पर स्वस्तिक और ऊं आदि मांगलिक चिह्न बनाना चाहिए। सूतिका गृह में श्री कृष्ण सहित माता देवकी की स्थापना कर लें।
फिर एक पालने या झूले पर भगवान कृष्ण की बाल गोपाल वाली तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें। इसके बाद पूर्ण भक्तिभाव के साथ फूल, धूप, अक्षत, नारियल, सुपारी ककड़ी, नारंगी तथा विभिन्न प्रकार के फल से भगवान श्री कृष्ण के बाल रुप की पूजा करनी चाहिए।
कथाओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अष्टमी की मध्य रात्रि या आधी रात को हुआ था। इसलिए जन्माष्टमी के दिन अर्द्ध रात्रि के समय भगवान कृष्ण जी के जन्म-अवसर पर आरती करनी चाहिए और प्रसाद बांटना चाहिए। व्रती को नवमी के दिन ब्राह्मण को भोजन कराकर उसे दक्षिणा दे कर विदा करना चाहिए। जन्माष्टमी का व्रत करने वाले भक्तों को नवमी के दिन ही व्रत का पारण करना चाहिए।
कृष्ण जन्माष्टमी व्रत का फल (Benefits of Krishna Janmashtami Vrat)
भविष्यपुराण के अनुसार जन्माष्टमी व्रत के पुण्य से व्रत रखने वाले की सभी प्रकार की इच्छाएं पूरी होती हैं। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि जो एक बार भी इस व्रत को कर लेता है वह विष्णुलोक को प्राप्त करता है यानि मोक्ष को प्राप्त करता है।
कृष्ण जन्माष्टमी व्रत कथा (Krishna Janmashtami Vrat Katha)
जब श्री कृष्ण ने (द्वापर युग) जन्म लिया तब धरती पर खूब कंस का अन्याय बढ़ा हुआ था।। पृथ्वी ने गाय का रूप धारण किया और ब्रह्माजी के पास कहानी सुनाने गई। ब्रह्माजी सब देवताओं को साथ लेकर पृथ्वी को भगवान विष्णु के पास क्षीरसागर ले गये। उस समय भगवान श्रीकृष्ण अनन्त शैय्या पर शयन कर रहे थे।
स्तुति करने पर भगवान की निद्रा भंग हो गई। भगवान ने ब्रह्माजी एवं सब देवताओं को देखकर आने का कारण पूछा, तो पृथ्वी बोली− ‘भगवान! मैं पाप के बोझ से दबी जा रही हूं। मेरा उद्धार कीजिए। यह सुनकर भगावान विष्णु बोले− मैं ब्रज मंडल में वासुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से जन्म लूंगा। तुम सब देवतागण ब्रज भूमि में जाकर यादव वंश में अपना शरीर धारण करो। इतना कहकर भगवान अंतर्ध्यान हो गए। इसके पश्चात देवता ब्रज मंडल में आकर यदुकुल में नन्द−यशोदा तथा गोप−गोपियों के रूप में पैदा हुए। द्वापर युग के अंत में मथुरा में उग्रसेन नाम के एक राजा राज्य करते थे। उग्रसेन के पुत्र का नाम कंस था। कंस ने उग्रसेन को बलपूर्वक सिंहासन से उतार कर जेल में डाल दिया और स्वयं राजा बन गया।
कंस की बहन देवकी का विवाह यादव कुल में वासुदेव के साथ निश्चित हो गया था। जब कंस देवकी को विदा करने के लिए रथ के साथ जा रहा था, तो आकाशवाणी की बात सुनकर कंस क्रोध में भरकर देवकी को मारने को तैयार हो गया। उसने सोचा− न देवकी होगी, न उसका कोई पुत्र होगा। वासुदेवजी ने कंस को समझाया कि तुम्हें देवकी से तो कोई भय नहीं है। देवकी की आठवीं संतान से तुम्हें भय है। इसलिए मैं इसकी आठवीं संतान को तुम्हें सौंप दूंगा। तुम्हारी समझ में जो आये, उसके साथ वैसा ही व्यवहार करना। कंस ने वासुदेवजी की बात स्वीकार कर ली और वासुदेव−देवकी को कारागार में बंद कर लिया। तभी नारदजी वहां आ पहुंचे और कंस से बोले कि यह कैसे पता चलेगा कि आठवां गर्भ कौन सा होगा। गिनती प्रथम से या अंतिम गर्भ से शुरू होगी।
इस तरह कंस ने नारदजी से परामर्श कर देवकी के गर्भ से उत्पन्न होने वाले समस्त बालकों को मारने का निश्चय कर लिया। इस प्रकार एक−एक करके कंस ने देवकी की सातों संतानों को निर्दयतापूर्वक मार डाला। भाद्रपद के कृष्णपक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। उनके जन्म लेते ही जेल की कोठरी में प्रकाश फैल गया। वासुदेव देवकी के सामने शंख, चक्र, गदा एवं पद्मधारी चतुर्भुज से अपना रूप प्रकट कर कहा− अब मैं बालक का रूप धारण करता हूं। तुम मुझे तत्काल गोकुल के नंद के यहां पहुंचा दो और उनकी अभी−अभी जन्मी कन्या को लाकर कंस को सौंप दो। तत्काल वासुदेवजी की हथकडि़यां खुल गईं।
दरवाजे अपने आप खुल गये। पहरेदार सो गये। वासुदेव श्रीकृष्ण को सूप में रखकर गोकुल को चल दिये। रास्ते में यमुना श्रीकृष्ण के चरणों को स्पर्श करने के लिए आगे बढ़ने लगीं। भगवान ने अपने पैर लटका दिये। चरण छूने के बाद यमुना घट गईं। वासुदेव यमुना पार कर गोकुल में नंद के यहां गए। बालक कृष्ण को यशोदाजी की बगल में सुलाकर कन्या को लेकर वापस कंस के कारागार में आ गये। जेल के दरवाजे पूर्ववत बंद हो गये। वासुदेवजी के हाथों में हथकडि़यां पड़ गईं। पहरेदार भी जाग गये।
कन्या के रोने पर कंस को खबर दी गई। कंस ने कारागार में आकर कन्या को लेकर पत्थर पर पटककर मारना चाहा, परंतु वह कंस के हाथों से छूटकर आकाश में उड़ गई और देवी का रूप धारण कर बोली कि हे कंस! मुझे मारने से क्या लाभ है? तेरा शत्रु तो गोकुल में पहुंच चुका है। यह दृश्य देखकर कंस हतप्रभ और व्याकुल हो गया। कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए अनेक दैत्य भेजे। श्रीकृष्ण ने अपनी अलौकिक माया से सारे दैत्यों को मार डाला। बड़े होने पर कंस को मारकर उग्रसेन को राजगद्दी पर बैठाया। श्रीकृष्ण की जन्मतिथि (Krishna Janmashtami) को तभी से सारे देश में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है।