भगवान शिव के लिये ऐसे किया था पार्वती जी ने कजली तीज व्रत, पढ़िये पूजा की सारी जानकारी

कजली तीज महिलाओं का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार होता है। इसे बड़ी तीज या सातुड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है। ये मुख्यतः पूर्वी भारत में भादो कृष्ण तृतिया को मनाया जाता है। अब आप सोच रहे होगे कि कजली कब है, कजली कैसे मनाते हैं, कजली क्यों मनाते हैं तो आइये जानते हैं इन सब के बारे में…

 

कजली तीज कब है और शुभ मुहूर्त (Kajali Teej kab hai Shubh Muhurat) 

कजरी तीज 6 अगस्त को पड़ रही है। इसका पूजा का समय है…

तृतिया तिथि शुरु – 22:50 – 5 अगस्त 2020

तृतिया तिथि खत्म – 00:15 – 7 अगस्त 2020

कजरी तीज क्‍यों मनाई जाती है (Why Kajali Teej is celebrate in hindi)

कजरी तीज पति-पत्नी के रिश्तों को मजबूत करता है इसलिये यह त्योहार विवाहित जोड़ों के लिए बहुत अधिक महत्व रखता है। इस दिन महिलाएं सत्तू खाकर अपना व्रत तोड़ती हैं। इस दिन नीम के पेड़ की पूजा करती हैं।

ऐसा माना जाता है कि कजरी तीज के दिन ही मां पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या का फल प्राप्त किया था। यही वजह है कि इस दिन शिव और पार्वती दोनों की ही उपासना की जाती है। यदि कुंवारी लड़की इस दिन व्रत करे तो उसे मनचाहा वर प्राप्‍त होता है।

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कजरी तीज का महत्त्व (Importance of Kajali Teej)

कजली तीज से मानसून के स्वागत के लिये भी मनाया जाता है। वहीं यह भी कहा जाता है कि इस दिन देवी पार्वती की पूजा की भी बड़ा महत्व है। जो महिलाएं कजरी तीज पर देवी पार्वती की पूजा करती है उन्हें अपने पति के साथ सम्मानित संबंध होने से आशीर्वाद मिलता है।

किवंदती यह है की 108 जन्म लेने के बाद देवी पार्वती भगवान शिव से शादी करने में सफल हुई। इस दिन को निस्वार्थ प्रेम के सम्मान के रूप में मनाया जाता है। यह निस्वार्थ भक्ति थी जिसने भगवान् शिव को अंततः देवी पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करने का नेतृत्व किया।

कजली तीज कैसे मनाते है या कजली तीज की पूजा विधि (Kajali Teej Puja Vidhi)

इस पूरे दिन महिलाएं सिर्फ पानी पीकर व्रत करती हैं। सुबह सूरज निकलने से पहले धमोली की जाती है। धमोली में सुबह मिठाई, फल आदि का नाश्ता किया जाता है। फिर नहा धोकर महिलाएं सोलह बार झूला झूलती हैं, उसके बाद ही पानी पीती है।

सायंकाल के बाद महिलाएं सोलह श्रृंगार कर तीज माता अथवा नीमड़ी माता की पूजा करती हैं। सबसे पहले तीज माता को जल के छींटे दें। रोली के छींटे दें व चावल चढ़ाएं। नीमड़ी माता के पीछे दीवार पर मेहंदी, रोली व काजल की तेरह-तेरह बिंदिया अपनी अंगुली से लगाएं। मेहंदी, रोली की बिंदी अनामिका अंगुली से लगानी चाहिए और काजल की बिंदी तर्जनी अंगुली से लगानी चाहिए। नीमड़ी माता को मौली चढाएं।

मेहंदी, वस्त्र (ओढ़नी), काजल चढ़ाएं। दीवार पर लगाई बिंदियों पर भी मेहंदी की सहायता से लच्छा चिपका दें। फिर नीमड़ी पर फल, सातु और दक्षिणा चढ़ाएं। पूजा के कलश पर रोली लगाकर लच्छा बांधें। दीपक के प्रकाश में नींबू, ककड़ी, मोती की लड़, नीम की डाली, नाक की नथ, साड़ी का पल्ला, दीपक की लौ, सातु का लड्‍डू आदि का प्रतिबिंब देखें और दिखाई देने पर इस प्रकार बोलना चाहिए ‘तलाई में नींबू दीखे, दीखे जैसा ही टूटे’ इसी तरह बाकि सभी वस्तुओं के लिए एक-एक करके बोलना चाहिए। इस तरह पूजन करने के बाद सातुड़ी तीज माता की कहानी सुननी चाहिए।

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चंद्रमा को अर्घ्य देने की विधि

चांद को जल के छींटे देकर रोली, मौली, अक्षत चढ़ाएं। फिर चांद को भोग चढ़ाएं।

फिर चांदी की अंगूठी और आंखें (गेंहू) हाथ में लेकर जल से अर्घ्य दें।

अर्घ्य देते समय थोड़ा-थोड़ा जल चंद्रमा की मुख की और करके गिराते रहें।

चार बार एक ही जगह खड़े हुए घूमें। परिक्रमा लगाएं।

अर्घ्य देते समय बोलें, ‘सोने की सांकली, मोतियों का हार, चांद ने अरग देता, जीवो वीर भरतार’ सत्तू के पिंडे पर तिलक करें व भाई / पति, पुत्र को तिलक करें। पिंडा पति / पुत्र से चांदी के सिक्के से बड़ा करवाएं। यानी जो आपने सत्तु का बड़ा सा केक बनाया है उसे चांदी के सिक्के से पुत्र या पति को तोड़ने के लिए कहें। इस क्रिया को पिंडा पासना कहते हैं।

पति पिंडे में से सात छोटे टुकड़े करते हैं, व्रत खोलने के लिए यही आपको सबसे पहले खाना है। पति बाहर हो तो सास या ननद पिंडा तोड़ सकती है। सातु पर ब्लाउज़, रुपए रखकर बयाना निकाल कर सासुजी के चरण स्पर्श कर कर उन्हें देना चाहिए। सास न हो तो ननद को या ब्राह्मणी को दे सकते हैं। आंकड़े के पत्ते पर सातु खाएं और अंत में आंकड़े के पत्ते के दोने में सात बार कच्चा दूध लेकर पिएं इसी तरह सात बार पानी पिएं।

दूध पीकर इस प्रकार बोलें- ‘दूध से धायी, सुहाग से कोनी धायी, इसी प्रकार पानी पीकर बोलते हैं- पानी से धायी, सुहाग से कोनी धायी’ सुहाग से कोनी धायी का अर्थ है पति का साथ हमेशा चाहिए, उससे जी नहीं भरता। बाद में दोने के चार टुकड़े करके चारों दिशाओं में फेंक देना चाहिए। यह व्रत सिर्फ पानी पीकर किया जाता है।

चांद उदय होते नहीं दिख पाए तो चांद निकलने का समय टालकर आसमान की ओर अर्घ्य देकर व्रत खोल सकते हैं। इस तरह तीज माता की पूजा संपन्न होती है। इस व्रत में गर्भवती स्त्री फलाहार कर सकती हैं।

सातुड़ी तीज या कजली तीज पूजा की सामग्री (Kajali Teej Puja Samagri)

एक छोटा सातू का लडडू, नीमड़ी, दीपक, केला, अमरुद या सेब, ककड़ी, दूध मिश्रित जल, कच्चा दूध, नींबू, मोती की लड़/नथ के मोती, पूजा की थाली, जल कलश।

सातुड़ी तीज या कजली तीज की कथा (Kajali Teej Katha) 

कजली तीज की कथा कुछ इस प्रकार है…

एक साहूकार के सात बेटे थे जिसमें से सबसे छोटा बेटा अपाहिज था। उस बेटे को राज वेश्या के यहां जाने की बुरी आदत थी। उसकी पत्‍नी अपने पति की आज्ञा का पालन करती थी इसलिए वह पति के प्रत्येक आदेश का पालन करती थी। पति के कहे अनुसार वह रोज उसे अपने कंधे पर बैठाकर वेश्या के यहां छोड़ने जाती थी।

भाद्रपद माह में कजली तीज आई तो घर की सभी बहुओं ने पूजा के लिये सत्‍तू बनाया। मगर छोटी बहू के गरीब होने की वजह से वह कुछ न बना सकी। शाम को बहू पूजा करने बैठी तो उसका पति बोला मुझे वेश्या के यहां छोड़ के आ। पति का आदेश सुनकर वह उसे कंधे पर बिठाकर वेश्या के यहां छोड़ने गई। उस दिन पति उसे घर जाने का बोलना भूल गया। वह बाहर ही उसका इंतजार करने लगी।

तभी जोरदार बारिश होने लगी और बरसाती नदी में पानी बढ़ने लगा। कुछ देर बाद नदी से आवाज आई आवतारी जावतारी दोना खोल के पी, पिया प्यारी होय….।

आवाज सुनकर स्त्री ने नदी की ओर देखा तो उसे वहां तैरता हुआ दोना दिखा, जिसमें दूध भरा हुआ था। उसने आवाज के कहे अनुसार दोना उठाकर सात घूंट में सारा दूध पी लिया। उसी समय से उसके साथ सब अच्‍छा होने लगा। वेश्या ने उस स्त्री के अपाहिज पति का सारा धन लौटा दिया और गांव छोड़ कर चली गई। तीज माता की कृपा से उसका अपाहिज पति भी सही मार्ग पर लौट आया।

क्या है कजरी तीज की पौराणिक कथा

एक पौराणिक कथा के अनुसार मध्य भारत में कजली नाम का एक वन था, जो राजा दादूरै के क्षेत्र में पड़ता था। इस वन में राजा अपनी रानी के साथ विहार करने आया करते थे, और यह वन उनके प्रेम का गवाह था। लोग इस वन के नाम पर कजरी गीत गाया करते थे, धीरे धीरे यह गीत दूर-दूर तक फैलने लगा। कुछ समय पश्चात् राजा की मृत्यु हो गयी, और रानी उसकी चिता में सती हो गयी। उन दोनों के अमर प्रेम के कारण वहां के लोग कजरी के गाने पति-पत्नी के प्रेम के प्रतीक के रूप में गाने लगे।

इसके अलावा माता पार्वती और शिव जी की कथा भी तीज मनाने का मुख्य कारण है। जिसके अनुसार माता पार्वती ने शिव जी को प्राप्त करने हेतु 108 वर्ष तक कड़ी तपस्या की थी, और शिवजी ने प्रसन्न होकर उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार कर लिया था। उन्होंने प्रसन्न होकर पार्वती जी को यह वरदान भी दिया की इस दिन जो भी स्त्री व्रत रखेगीऔर इस कथा को सुनेगी और सुनाएगी, उसे सौभाग्वती होने का आशीर्वाद प्राप्त होगा।

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