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Maa Brahmacharini ki Pujavidhi, Mantra, Katha, Aarti

मां ब्रह्मचारिणि के बारे में पढ़े पूरी जानकारी

Maa Brahmacharini ki Pujavidhi : नवरात्रि के दूसरे दिन दुर्गा मां के दूसरे रूप मां ब्रह्मचारिणी (Maa Brahmacharini) की पूजा की जाती है। मां ब्रह्मचारिणी (Brahmacharini) देवी यश, सिद्धि और सर्वत्र विजय की प्रतीक हैं। कठोर तपस्या के बाद मां ब्रह्मचारिणी (Brahmacharini) ने भगवान शिव (Lord Shiva) को पति के रूप में पाया था। इसलिए इन्हें तपश्चारिणी भी कहा जाता है। नवरात्रि में पहले दिन कलश स्थापना के बाद मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है।

देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। जीन की कठिन समय मे भी मनुष्य का मन कर्तव्य पथ से विचलित नहीं होता है। उसे उसके करियर में सफलता अवश्य मिलती है। साथ ही बुद्धि क्षमता भी बढ़ती है। देवी अपने साधकों की मलिनता, दुर्गणों व दोषों को खत्म करती है। देवी की कृपा से सर्वत्र सिद्धि तथा विजय की प्राप्ति होती है। मां ब्रह्मचारिणी (Brahmacharini Maa) के दाएं हाथ में माला और बाएं हाथ में कमंडल है।

ब्रह्मचारिणी मां का भोग – Maa Brahmacharini ka Bhog

नवरात्रि (Navaratri 2020) के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी (Brahmacharini) को दूध और दही का भोग लगाया जाता है। मां को शक़्कर, सफेद मिठाई एवं मिश्री का भी भोग लगाया जा सकता है।

Navratri में माता की पूजा आयुर्वेदिक उपचार

माँ ब्रह्मचारिणी – ( ब्राह्मी ) = ब्राह्मी आयु व याददाश्त बढ़ाकर रक्त विकारो को दूर कर स्वर को मधुर बनाती है इसलिए इन्हें सरस्वती भी कहा जाता है।

पृथक बीज मंत्र का करें जप (Maa Brahmacharini beej mantra)

ब्रह्मचारिणी : ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:

मां की उपासना का मंत्र -Maa Brahmacharini mantra

दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप का आचरण करने वाली. मां के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में यह कमण्डल धारण किए हैं.

देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥

देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

ध्यान मंत्र (Brahmacharini dhyan mantra)

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
जपमाला कमण्डलु धरा ब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालङ्कार भूषिताम्॥
परम वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोला पीन।
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

स्त्रोत (Brahmacharini Strotam)

तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शङ्करप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥

कवच मंत्र (Brahmacharini kavach mantra)

त्रिपुरा में हृदयम् पातु ललाटे पातु शङ्करभामिनी।
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥
पञ्चदशी कण्ठे पातु मध्यदेशे पातु महेश्वरी॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।
अङ्ग प्रत्यङ्ग सतत पातु ब्रह्मचारिणी॥

maa brahmacharini ki katha

मां ब्रह्मचारिणी की कथा (Maa Brahmacharini ki katha)

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, मां ब्रह्मचारिणी पर्वतराज हिमालय के घर जन्मी थी। इनकी माता का नाम मैना था। एक बार नारदजी से हिमालय राज ने नारद जी से Brahmacharini के विवाह के बारे में पूछा तो नारद जी ने वैवाहिक जीवन में अवरोध बताया। निवारण पूछे जाने पर मुनि श्री नारद जी ने निवारण हेतु व्रत, तप करने के उपाय भी बताए। अर्थात नारद जी के कहे अनुसार कन्या व्रत व तपस्या में लीन हुई और हजारों वर्ष तक समस्त देव और ब्रह्मदेव की आराधना की। मां के द्वारा की गई तपस्या का उल्लेख गोस्वामी तुलसी दास ने भी श्रीराम चरित्र मानस में कुछ इस तरह वर्णित किया है-

कछु दिन भोजन वारि बतासा।
कीन्ह कछुक दिन कठिन उपवासा।।

मां ब्रह्मचारिणी इस प्रकार की कठिन तपस्या व व्रत से देव समुदाय सहित साक्षात ब्रह्मा जी ने प्रसन्न हुए। फिर उन्हें स्वयं शिव को पति के रूप में पाने का वरदान मिला, जिससे भगवान भोलनाथ की अर्धांगिनी बनने का अवसर मिला। इसलिए इन्हें ब्रह्मचारिणी के नाम से पूजा जाता है।

मां ब्रह्मचारिणी की पूजन विधि (Maa Brahmacharini ki Puja Vidhi)

मां ब्रह्मचारिणी का महत्व (Maa Brahmacharini ka mahatva)

दुख, पीड़ा, दरिद्रता, रोग, भय, दुखों को दूर करने के लिये मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना होती है। मां दुर्गा के दूसरा रूप मां ब्रह्मचारिणी हैं। ब्रह्म से आशय है तपस्या और चारिणी अर्थात आचरण करने वाली। इस तरह ब्रह्मचारिणी का अर्थ होता है तप का आचरण करने वाली। यह श्वेत वस्त्र धारण किए, दाएं हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमण्डल धारण करती हैं। मां दुर्गा का यह रूप भक्तों को अनंतफल देता है। मां की उपासना से जीवन में तप, त्याग,वैराग्य, सदाचार और संयम में वृद्धि होती है। ब्रह्मचारिणी देवी ने अपने दिव्य तप से ही राक्षसों के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई थी। इसी तरह वह अपने आराध्यों को भी अभीष्ट फल प्रदान करती हैं।

इनकी आराधना से जीवन मे संयम, आत्मविश्वास, बल और सात्विक बुद्धि बढ़ती है। माता के तप के प्रभाव से जीवन में व्याप्त अविवेक, असंतोष, लालच आदि का नाश होता है। जीवन में उत्साह, धैर्य और साहस का समावेश होता है। मनुष्य कर्मठ बनता है। जिसके जीवन में अंधकार फैला हो और मुश्किल समय में धैर्य व साहस खोने वालों के लिए यह मां का यह दूसरा ब्रह्मचारिणी स्वरूप दिव्य और आलौकिक प्रकाश लेकर आता है। इस दिन ऐसी कन्याओं का पूजन किया जाता है कि जिनका विवाह तय हो गया है लेकिन अभी शादी नहीं हुई है। इन्हें अपने घर बुलाकर पूजन के पश्चात भोजन कराकर वस्त्र, पात्र आदि भेंट किए जाते हैं।

मां ब्रह्माचारिणी की आरती (Maa Brahmacharini ki Aarti)

जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता.

जय चतुरानन प्रिय सुख दाता.

ब्रह्मा जी के मन भाती हो.

ज्ञान सभी को सिखलाती हो.

ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा.

जिसको जपे सकल संसारा.

जय गायत्री वेद की माता.

जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता.

कमी कोई रहने न पाए.

कोई भी दुख सहने न पाए.

उसकी विरति रहे ठिकाने.

जो ​तेरी महिमा को जाने.

रुद्राक्ष की माला ले कर.

जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर.

आलस छोड़ करे गुणगाना.

मां तुम उसको सुख पहुंचाना.

ब्रह्माचारिणी तेरो नाम.

पूर्ण करो सब मेरे काम.

भक्त तेरे चरणों का पुजारी.

रखना लाज मेरी महतारी.

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माँ दुर्गा के 9 रूप

शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री

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