Maa Kalaratri Ki Pujavidhi : Navratri 2021 नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। मां कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत ही भयानक है। लेकिन मां का हृदय अत्यंत ही कोमल है। मां अपने भक्तों को सभी प्रकार की परेशानियों से मुक्ति दिलाती है।
मां के गले में नरमुंडों की माला है। मां दुर्गा की सातवीं स्वरूप और चार भुजाओं वाली मां कालरात्रि असुर रक्तबीज का संहार करने के लिए उत्पन्न हुई थीं।
मां कालरात्रि को शुभंकरी भी कहते हैं। मां का शरीर रात से भी ज्यादा काला है। देवी कालरात्रि के बाल बिखरे हुए हैं और मां के गले में नर मुंडों की माला विराजित है। मां के चार हाथ हैं जिनमें से एक हाथ में कटार और दूसरे में लोहे का कांटा है। देवी के तीन नेत्र हैं और इनकी सांस से अग्नि निकलती है। मां का वाहन गधा है।
विषय सूची
कालरात्रि का स्वरूप – Maa Kalaratri Ka Swaroop
मां कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत ही भयानक है। लेकिन मां का हृदय अत्यंत ही कोमल है। मां कालरात्रि के तीन नेत्र हैं। जो कि पूरी तरह आकार में गोल है और इनका रंग काला है। इनकी सासों से अग्नि निकलती है। मां के गले में नरमुंडों की माला है। उनके दहिने हाथ अपने भक्तों को आर्शीवाद देते हुए है और इसके नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। मां के बायीं तरफ के ऊपरी हाथ में लोहे का कांटा और इसके नीचे वाले हाथ में खड्ग है। देवी कालरात्रि के बाल खुले हुए हैं और यह गदर्भ की सवारी करती हैं। मां की उपासना से सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। इसलिए मां की उपासना शुभकारी कहलायी गई है।
मां कालरात्रि काल से भी रक्षा करती हैं। इसलिए इनके साधक को आकाल मृत्यु का भी भय नही होता।
मां कालरात्रि की पूजा का महत्व – Maa Kalaratri Ki Puja Ka Mahatva
मां कालरात्री दुष्टों का काल करती हैं। साथ ही जो ऐसा काम करता है और उनके भक्तों के लिए शुभ फल प्रदान करती हैं। देवी कालरात्रि की पूजा करने से भूत प्रेत, राक्षस, ग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि सभी नष्ट हो जाते हैं। अगर किसी की कुंडली में सभी ग्रह खराब हो या फिर अशुभ फल दे रहे हों तो नवरात्र के सातंवें दिन उस व्यक्ति को मां कालरात्रि की पूजा अवश्य ही करनी चाहिए। क्योंकि सभी नौ ग्रह मां कालरात्रि के आधीन है। मां कालरात्रि के आर्शीवाद से उनके भक्तों की सभी परेशानियां समाप्त हो जाती है।
मां कालरात्रि की पूजा विधि – Maa Kalaratri ki Puja vidhi – Maa Kalaratri ki puja kaise kare
- नवरात्रि में पहले दिन कलश स्थापना हो जाती है इसलिये आपको सीधे पूजा करना है।
- मां कालरात्रि की पूजा ब्रह्ममुहूर्त में ही की जाती है।
- इसके अलावा तांत्रिक मां की पूजा आधी रात मं करते हैं।
- सबसे पहले सुबह उठकर स्नान ध्यान कर लें।
- इसके बाद मां कालरात्रि का ध्यान करें।
- मां कालरात्रि को कुमकुम, लाल पुष्प, रोली आदि चढ़ाएं।
- माला के रूप मे मां को नीबूओं की माला पहनाएं
- तेल का दीपक जलाकर उनका पूजन करें।
- मां की कृपा पाने के लिए भक्तों को गंगा जल, पंचामृत, पुष्प, गंध, अक्षत से मां की पूजा करनी चाहिए। इसके अलावा मां को गुड़ का भोग लगाएं।
- मां की कथा सुने और धूप व दीप से इनकी आरती उतारें।
- इसके बाद अगर आप व्रत हैं तो व्रत वाला खाना खाएं नहीं तो जो आप खाना चाहते हैं वह खा सकते हैं।
- नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रुपों की पूजा होती है। फिर नौवें दिन कन्या पूजन करके व्रत सम्पन्न किया जाता है।
मां कालरात्री का मंत्र – Maa Kalaratri Ka Mantra
ॐ कालरात्र्यै नम:
ओंम फट् शत्रून साघय घातय ॐ
ओओंम ह्रीं श्रीं क्लीं दुर्गति नाशिन्यै महामायायै स्वाहा
या देवी सर्वभूतेषु कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।
ज्वाला कराल अति उग्रम शेषा सुर सूदनम।
त्रिशूलम पातु नो भीते भद्रकाली नमोस्तुते।।
मां कालरात्रि की स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
ध्यान मंत्र
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।
वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥
मां कालरात्रि बीज मंत्र – Maa Kalratri Beej Mantra
क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:।
मां कालरात्रि की कथा – Maa Kalaratri Ki Katha
पौराणक कथा के अनुसार जब तीनों लोकों में शुम्भ निशुम्भ और रक्तबीज तीनों राक्षसों ने आतंक था तो परेशान होकर सभी देवता भगवान शिव के पास गये। शिव जी मे समस्या के समाधान बताते हुए आदिशक्ति से उन तीनों का संहार करने को कहा। जिस पर माता पार्वती ने उन दुष्टों के संहार के लिए मां दुर्गा का रूप धारण कर लिया। माता पार्वती ने शुम्भ और निशुम्भ का अंत कर दिया। लेकिन जैसे ही मां ने रक्तबीज पर प्रहार किया उसके रक्त से अनेकों रक्तबीज उत्पन्न हो गए। जिस पर मां दुर्गा ने कालरात्रि का रूप धारण किया।
इसके बाद मां कालरात्रि ने रक्तबीज पर प्रहार करना शुरु कर दिया और उसके रक्त को अपने मुंह में भर लिया और रक्तबीज का गला काट दिया। जिससे तीनों लोकों को राक्षसों से मुक्ति मिली।
मां कालरात्रि की आरती – Maa Kalaratri Ki Aarti
कालरात्रि जय-जय-महाकाली।
काल के मुह से बचाने वाली॥
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा।
महाचंडी तेरा अवतार॥
पृथ्वी और आकाश पे सारा।
महाकाली है तेरा पसारा॥
खडग खप्पर रखने वाली।
दुष्टों का लहू चखने वाली॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा।
सब जगह देखूं तेरा नजारा॥
सभी देवता सब नर-नारी।
गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥
रक्तदंता और अन्नपूर्णा।
कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥
ना कोई चिंता रहे बीमारी।
ना कोई गम ना संकट भारी॥
उस पर कभी कष्ट ना आवें।
महाकाली माँ जिसे बचाबे॥
तू भी भक्त प्रेम से कह।
कालरात्रि माँ तेरी जय॥
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माँ दुर्गा के 9 रूप
शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री
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Source :
कालरात्रि – विकिपीडिया