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Maa Katyayani ki pujavidhi: मां कात्यायनी की पूजा से दूर होंगी विवाह संबंधी परेशानियां, पढ़िये katha, aarti

maa katyayani

नवरात्रि (Navaratri) के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। मां कात्यायनी (Maa Katyayani) ने ही असुरों से देवताओं की रक्षा की थी। महर्षि कत्यायन के घर जन्म लेने के कारण इनका नाम मां कत्यायनी पड़ा। मां ने महिषासुर जैसे राक्षसों का वध करके देवाताओं को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई थी। उसके बाद मां ने शुम्भ और निशुम्भ का भी वध किया था और सभी नौ ग्रहों को उनकी कैद से छुड़ाया था।

मां कात्यायनी की पूजा करने से कुंवारी कन्याओं के विवाह में आ रही सभी परेशानियां समाप्त होती है और उन्हें एक सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है। अगर कुंडली में बृहस्पति खराब हो तो मां कात्यायनी की पूजा करने से बृहस्पति के शुभ फल प्राप्त होने लगते हैं।

मां कात्यायनी शक्ति, सफलता और प्रसिद्धि देने वाली हैं। इनकी पूजा से और भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, काम और मोक्ष, धर्म, चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके दुख, रोग, और भय खत्म समाप्त हो जाते हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं अगर किसी कन्या के विवाह में बाधा आ रही हो, तो उसे मां कात्यायनी का व्रत और पूजन करना चाहिए। ऐसा करने से विवाह में आ रही अड़चनें दूर होती हैं।

कात्यायनी का स्वरूप (Katyayani Ka Swaroop)

मां के स्वरूप की बात करें तो मां अत्याधिक कांतिवान है। देवी कात्यायनी का शरीर आभूषणों से सुशोभित है। मां की चार भुजाएं हैं। दाईं तरफ का ऊपर वाला हाथ से आशीर्वाद दे रही तथा दूसरा वाला हाथ वर मुद्रा में। एक हाथ में तलवार है व एक हाथ में कमल का फूल है। इनका वाहन सिंह है।

Maa Katyayani ki puja ka mahatva
Maa Katyayani ki puja ka mahatva

कात्यायनी की पूजा का महत्व (Katyayani Ki Puja Ka Mahatva)

कात्य गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन द्वारा भगवती पराम्बा की कठोर तपस्या के बाद उन्हें मां पुत्री रुप में प्राप्त हुई। इसलिये मां का नाम देवी कात्यायनी पड़ा। इनका नाम शोध कार्यों में लिया जाता है। इसीलिए आजकल वैज्ञानिक युग में कात्यायनी का महत्व सर्वाधिक हो जाता है। ये वैद्यनाथ नामक स्थान पर प्रकट हुई और वहां इनकी पूजा की गई। गोपियों ने भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की इन्हीं की पूजा की थी। यह पूजा कालिंदी यमुना के तट पर की गई थी। इसीलिए ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इनका स्वरूप अत्यंत भव्य और दिव्य है। ये स्वर्ण के समान चमकीली हैं और भास्वर हैं।

कुंवारी कन्याओं की विवाह की समस्या होगी दूर

मां कात्यायनी की पूजा करने से कुंवारी कन्याओं के विवाह में आ रही सभी परेशानियां समाप्त होती है और उन्हें एक सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है। अगर कुंडली में बृहस्पति खराब हो तो मां कात्यायनी की पूजा करने से बृहस्पति के शुभ फल प्राप्त होने लगते हैं। मां कत्यानी की पूजा करने से आज्ञा चक्र जाग्रित होता है। जिसकी वजह से सभी सिद्धियों की प्राप्ति साधक को स्वंय ही हो जाती है। मां की उपासना से शोक, संताप, भय आदि सब नष्ट हो जाते हैं।

मां कात्यायनी की पूजा करने से व्यक्ति को अपने दम पर सफलता और प्रसिद्धि मिलती है। मां कात्यायनी देवी दुर्गा का ज्वलंत स्वरूप हैं, इसलिए शत्रुओं के दमन लिए भी इनकी पूजा की जाती है। इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप खत्म हो जाते हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं। इसलिए कहा जाता है कि इस देवी की उपासना करने से परम पद की प्राप्ति होती है।

Maa Katyayani pujavidhi

मां कात्यायनी की पूजा विधि (Maa Katyayani ki Puja vidhi or Maa Katyayani ki puja kaise kare)

मां कात्यायनी का मंत्र (Maa Katyayani Ka Mantra)

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

ॐ कात्यायिनी देव्ये नमः

कात्यायनी महामाये, महायोगिन्यधीश्वरी।
नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः।।

चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दूलवर वाहना।
कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानव घातिनि।।

ओम देवी कात्यायन्यै नमः॥

एत्तते वदनम साओमयम् लोचन त्रय भूषितम।
पातु नः सर्वभितिभ्य, कात्यायनी नमोस्तुते।।

मां कात्यायनी की स्तुति

या देवी सर्वभू‍तेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

मां कात्यायनी की प्रार्थना

चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥

मां कात्यायनी बीज मंत्र

क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम

Maa Katyayani kath

मां कात्यायनी की कथा (Maa Katyayani Ki Katha)

पौराणिक कथा के अनुसार महार्षि कात्यायन की घोर तपस्या के बाद उन्हें मां आदिशक्ति प्रसन्न होकर उनके यहां पुत्री रूप में जन्म लेने का वरदान दिया था। इससे मुनि बेहद खुश हुए। देवी मां ने जन्म महार्षि कात्यान के आश्राम में जन्म लिया। जिसके बाद उनका पालन पोषण ऋषि ने ही किया। पुराणों के अनुसार जिस समय त्रिदेवों के तेज से मां की उत्पत्ति हुई थी उस समय महिषासुर नाम के राक्षस का अत्याचार बहुत अधिक बढ़ गया था। मां ने ऋषि कात्यायन के यहां अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन जन्म लिया था। इसके बाद ऋषि कात्यायन ने उनका तीन दिनों तक पूजन किया था।

मां ने दशमी तिथि के दिन महिषासुर का अंत किया था। इसके बाद शुम्भ और निशुम्भ ने भी स्वर्गलोक पर आक्रमण करके इंद्र का सिंहासन छिन लिया था और नवग्रहों को बंधक बना लिया था। अग्नि और वायु का बल पूरी तरह उन्होंने छीन लिया था। उन दोनों ने देवताओं का अपमान करके उन्हें स्वर्ग से निकल दिया था। इसके बाद सभी देवताओं ने मां की स्तुति की इसके बाद मां ने शुंभ और निशुंभ का भी वध करके देवताओं को इस संकट से मुक्ति दिलाई थी। क्योंकि मां ने देवताओं को वरदान दिया था कि वह संकट के समय में उनकी रक्षा अवश्य करेंगी।

Maa Katyayani ki Aarti

मां कात्यायनी की आरती (Maa Katyayani Ki Aarti)

जय कात्यायनि माँ, मैया जय कात्यायनि माँ।
उपमा रहित भवानी, दूँ किसकी उपमा॥
मैया जय कात्यायनि….

गिरजापति शिव का तप, असुर रम्भ कीन्हाँ ।
वर-फल जन्म रम्भ गृह, महिषासुर लीन्हाँ ॥
मैया जय कात्यायनि….

कर शशांक-शेखर तप, महिषासुर भारी।
शासन कियो सुरन पर, बन अत्याचारी॥
मैया जय कात्यायनि….

त्रिनयन ब्रह्म शचीपति, पहुँचे, अच्युत गृह।
महिषासुर बध हेतू, सुर कीन्हौं आग्रह॥
मैया जय कात्यायनि….

सुन पुकार देवन मुख, तेज हुआ मुखरित।
जन्म लियो कात्यायनि, सुर-नर-मुनि के हित॥
मैया जय कात्यायनि….

अश्विन कृष्ण-चौथ पर, प्रकटी भवभामिनि।
पूजे ऋषि कात्यायन, नाम काऽऽत्यायिनि॥
मैया जय कात्यायनि….

अश्विन शुक्ल-दशी को, महिषासुर मारा।
नाम पड़ा रणचण्डी, मरणलोक न्यारा॥
मैया जय कात्यायनि….

दूजे कल्प संहारा, रूप भद्रकाली।
तीजे कल्प में दुर्गा, मारा बलशाली॥
मैया जय कात्यायनि….

दीन्हौं पद पार्षद निज, जगतजननि माया।
देवी सँग महिषासुर, रूप बहुत भाया॥
मैया जय कात्यायनि….

उमा रमा ब्रह्माणी, सीता श्रीराधा।
तुम सुर-मुनि मन-मोहनि, हरिये भव-बाधा॥
मैया जय कात्यायनि….

जयति मङ्गला काली, आद्या भवमोचनि।
सत्यानन्दस्वरूपणि, महिषासुर-मर्दनि॥
मैया जय कात्यायनि….

जय-जय अग्निज्वाला, साध्वी भवप्रीता।
करो हरण दुःख मेरे, भव्या सुपुनीता॥
मैया जय कात्यायनि….

अघहारिणि भवतारिणि, चरण-शरण दीजै।
हृदय-निवासिनि दुर्गा, कृपा-दृष्टि कीजै॥
मैया जय कात्यायनि….

ब्रह्मा अक्षर शिवजी, तुमको नित ध्यावै।
करत ‘अशोक’ नीराजन, वाञ्छितफल पावै॥
मैया जय कात्यायनि….

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माँ दुर्गा के 9 रूप

शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री

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