बुराई पर अच्छाई की जीत का त्योहार है दशहरा। दशहरा के दिन भगवान श्री राम ने रावण का वध करके सीता जी को रावण की कैद से मुक्त कराया था। वहीं एक और कथा के अनुसार यह भी कथा है कि इस दिन मां दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था। जिसके बाद विजयदशमी का पर्व मनाया जाने लगा औऱ इस दिन मां दुर्गा की भी पूजा की जाने लगी। दशहरा पर शमी वृक्ष की पूजा का बहुत महत्व है। इसलिए आज हम बात करेंगे कि दशहरा पर शमी के पेड़ की पूजा कैसे करें।
विषय सूची
दशहरा कब मनाया जाता है
दशहरा को विजयदशमी (Vijayadashami) या आयुध पूजा (Ayudh Puja) के नाम से भी जाना जता है। दशहरा का पर्व हर साल अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है।
दशहरा का नाम विजयदशमी कैसे पड़ा
दशहरा से पहले नवरात्रि (Navratri) में नौ दिनों तक मां दुर्गा के 9 रूपों की पूजा होती है। लेकिन बिना योगिनियों की पूजा के देवी की पूजा संपन्न नहीं मानी जाती है। इसलिए विजया नक्षत्र में देवी की योगिनी जया और विजया आश्विन शुक्ल दशमी तिथि को होती है। ये दोनों योगनियां को कोई पराजित नहीं कर सकता। यही कारण है कि ये अपराजिता देवी के रूप में भी इनकी पूजा होती है। दशमी तिथि को विजया देवी की पूजा होने की वजह से दशहरा को विजया दशमी कहा जाता है।
शमी के पौधे का वैज्ञानिक नाम : – Prosopis cineraria (प्रोसोपिस सिनेरारीअ)
शमी वृक्ष क्या है – What is Shami Tree in Hindi
शनि से सम्बन्ध रखने वाला पौधे का नाम शमी है। शनि की कृपा प्राप्त करने के लिए और उसकी पीड़ा से मुक्ति के लिए शमी के पौधे का विशेष प्रयोग होता है।माना जाता है कि श्रीराम ने लंका पर आक्रमण के पूर्व इस पौधे की पूजा की थी। पांडवों ने अज्ञातवास में अपने सारे अस्त्र-शस्त्र इसी वृक्ष में छुपाए थे।
दशहरा पर शमी के पेड़ की पूजा कैसे करे (how to worship shami tree puja in hindi)
विजयादशमी के दिन प्रदोषकाल में शमी वृक्ष का पूजन किये जाने का विधान है। विजयादशमी के मौके पर कार्य सिद्धि का पूजन विजय काल में फलदायी रहता है। पूजन के दौरान शमी के कुछ पत्ते (shami tree leaf) तोड़कर उन्हें अपने पूजा घर में रखें। इसके बाद एक लाल कपड़े में अक्षत, एक सुपारी और शमी की कुछ पत्तियों (shami tree leaves) को डालकर उसकी एक पोटली बना लें। इस पोटली को घर के किसी बड़े व्यक्ति से ग्रहण करके भगवान राम की परिक्रमा करने से लाभ मिलता है।
शमी वृक्ष पूजन का महत्व (Dussehra par shami pujan ka mahatva)
दशहरे पर शमी के वृक्ष (shami tree in hindi) की पूजन का महत्व बहुत अधिक माना गया है। महाभारत के संदर्भ से पता चलता है कि पांडवों ने देश निकाला के अंतिम वर्ष में अपने हथियार शमी के वृक्ष में ही छिपाए थे। शमी वृक्ष तेजस्विता एवं दृढ़ता का प्रतीक भी माना गया है। जिसमें अग्नि तत्व की प्रचुरता होती है। इसी कारण यज्ञ में अग्नि प्रकट करने हेतु शमी की लकड़ी (shami tree root) के उपकरण बनाए जाते हैं।
विजयादशमी के दिन प्रदोषकाल में शमी वृक्ष (shami tree plant) के समीप जाकर उसे प्रणाम करें। पूजन के उपरांत हाथ जोड़कर निम्न प्रार्थना करें-
‘शमी शम्यते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी।
अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी।।
करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया।
तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता।।’
शमी वृक्ष के शनि के प्रकोप से मुक्ति मिलती है
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार घर में shami tree (shami ka ped) लगाने से ईश्वर की कृपा हर व्यक्ति पर बनी रहती है। इसके अलावा शनि देव के भी प्रकोप से व्यक्ति बचा रहता है। यह भी माना जाता है कि महाकवि कलिदास ने शमी के वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या करके ज्ञान की प्राप्ति की थी।
शमी वृक्ष की पूजा से क्या फायदे होते हैं (Shami Tree puja ke fayde)
मान्यता के अनुसार दशहरे के दिन शमी के वृक्ष की पूजा (shami tree puja) करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। खासकर क्षत्रियों में इस पूजन का महत्व ज्यादा है। साथ ही शमी का वृक्ष घर में लगाने से देवी-देवताओं की कृपा बनी रहती है। इससे घर में शनि का प्रकोप कम होता है। शमी के वृक्ष होने से सभी तंत्र-मंत्र और नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है।
मान्यता के अनुसार प्रभु श्रीराम ने लंका पर आक्रमण से पहले शमी के पेड़ के सामने शीष झुकाकर विजय की कामना थी। भगवान ने इन पत्तियों का स्पर्श करके जीत हासिल की थी, इसलिए शमी की पत्तियों का आज भी महत्व है।
शमी वृक्ष की पौराणिक कथा क्या है (shami tree story in hindi)
महर्षि वर्तन्तु का शिष्य कौत्स थे। कौत्स से शिक्षा पूरी होने के बाद गुरू वर्तन्तु ने दक्षिणा के रूप में 14 करोड़ स्वर्ण मुद्रा मांगी। जिसके लिये कौत्स महाराज रघु के पास गए। लेकिन कुछ दिन पहले महायज्ञ के कारण राजा का खजाना खाली हो चुका था। जिसकी वजह से राजा ने तीन दिन का समय मांगा। राजा धन जुटाने के लिए उपाय खोजने लग गया। उसने सोचा क्यों न स्वर्गलोक पर आक्रमण कर दें जिससे उसका शाही खजाना फिर से भर जाए।
राजा के इस विचार से देवराज इंद्र घबरा गए और कोषाध्याक्ष कुबेर से रघु के राज्य में स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा करने का आदेश दिया। इंद्र के आदेश पर रघु के राज्य में कुबेर ने शमी वृक्ष के माध्यम से स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा करा दी। ऐसा माना जाता है कि जिस तिथि को स्वर्ण की वर्षा हुई थी उस दिन विजयादशमी थी। राजा ने शमी वृक्ष से प्राप्त स्वर्ण मुद्राएं कौत्स को दे दीं। अतः इस घटना के बाद विजयादशमी के दिन शमी के वृक्ष के पूजा होने लगी।
दशहरे पर जलेबी क्यों खाई जाती है (Dussehra par jalebi kyi khai jati hai)
दशहरे के दिन जलेबी का प्रचलन कई जगह देखने को मिलता है। इमके पीछ भी बड़ा कारण है। दशहरे पर लोग जलेबी इसलिये खाते हैं क्योंकि राम को शश्कुली नामक मिठाई बहुत पसंद थी। इसे जलेबी के नाम से जाना जाता है। इसलिए रावण दहन के बाद लोग जलेबी खाकर खुशियां मनाते हैं।
अधिकतर पूछे गए सवाल और जवाब (FAQ)
शमी का पौधा घर में कहां लगाएं ?
शमी का पेड़ घर में ऐसे लगाना चाहिए की जब घर में अंदर प्रवेश करें तो यह बायीं और रहे। साथ ही आप घर की छत पर भी रख सकते हैं बस ध्यान रहे की उस जगह धूप अच्छी आती हो।
शमी के पेड़ के टोटके बताएं ?
कहा जाता है की शमी के पढ़े लगाने और उसकी पूजा करने से शनि देव की कृपा मिलती है अऊर जीवन में शनि दोष काम होता है। इसके अलावा शनिवार को शमी के पत्ते शनि देव को चढाने से भी शनि देव प्रसन्न होते हैं।
शमी का पौधा कहां मिलता है ?
शमी का पौधा मुख्य रूप से मरुस्थल या थार वाले इलाके पे पाया जाता है। लेकिन अगर आप घर में लगाना चाहते हैं तो शमी का पेड़ आसानी से अपने आस पास किसी भी नर्सरी में मिल जाता है।