श्रीराम के न्याय की कहानी – यह कहानी उस समय की है जब देश में राम राज्य था। भगवान श्रीराम अपने दरबार में लोगों की समस्याओं का समाधान करके लोगों को न्याय दिलाते थे। एक बार की बात है भगवान श्रीराम का दरबार दिन भर सबकी समस्या को सुलझाने के बाद, दरबार की कार्यवाही समेट रहा था। लोग अपनी अपनी समस्या का समाधान लेकर वापस अपने घर जा रहे थे। तभी प्रभु श्रीराम ने अपने भक्त लक्ष्मण को बाहर जाकर यह देखने को कहा कि, हे लक्ष्मण जाओ बाहर देखकर आओ कि बाहर कोई न्याय पाने के लिये बचा तो नहीं है। यह सुनकर लक्ष्मण तुरंत बाहर जाते हैं और देखते हैं। उन्हें बाहर कोई नहीं दिखता। इसलिये वह वापस दरबार में आकर भगवान राम को बताते हैं कि, नहीं प्रभु बाहर कोई नहीं हैं।
यह सुनकर प्रभु श्री राम फिर कहते है जाओं एक बार फिर देखकर आओ कि कोई न्याय पाने के लिये खड़ा तो नहीं है। यह सुनकर लक्ष्मण जी बड़े अचंभित हो जाते हैं कि अभी उन्होंने बताया कि बाहर कोई नहीं है फिर भी भगवान श्रीराम कह रहे हैं कि जाओं बाहर देख कर आओं कि कोई खड़ा तो नहीं हैं। लेकिन लक्ष्मण जी फिर भी बिना देर किये फिर से भगवान श्रीराम की आज्ञा मानकर बाहर देखने चले जाते है। वह इधर उधर देखकर वापस ही लौट रहे होते हैं कि उनकी नजर एक कुत्ते पर पड़ती हैं। उस कुत्ते के सिर पर चोट लगी होती है। वह कुत्ते से उस चोट के लगने का कारण पूछते हैं।
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कुत्ते को मिलता है न्याय
लक्ष्मण जी को देखकर कुत्ता खुश हो जाता है। वह लक्ष्मण जी से कहता है कि वह भगवान श्रीराम के दरबार में आया है। वह उनसे न्याय मांगना चाहता है। यह सुनकर लक्ष्मण जी उस कुत्ते को श्रीराम के दरबार में ले आते है। कुत्ते ने आकर राम को प्रणाम किया और बोलने लगा। वह बोला, ‘हे राम, मैं न्याय चाहता हूं। मेरे साथ बेवजह हिंसा की गई है। मैं चुपचाप बैठा हुआ था, सर्वथासिद्ध नाम का यह व्यक्ति आया और बिना किसी वजह के मेरे सिर पर छड़ी से वार किया। मैं तो बस चुपचाप बैठा हुआ था। मैं न्याय चाहता हूं।’
भिखारी को बुलाया जाता है…
भगवान राम सत्य, न्याय एवं सदाचार के प्रतीक हैं इसलिये उन्होंने तत्काल सर्वथासिद्ध को बुलवा भेजा जो एक भिखारी था। उसे दरबार में लाया गया। राम ने पूछा, ‘तुम्हारी कहानी क्या है? यह कुत्ता कहता है कि तुमने बिना वजह उसे मारा।’ सर्वथासिद्ध बोला, ‘हां, मैं इस कुत्ते का अपराधी हूं। मैं भूख से बौखला रहा था, मैं गुस्से में था, निराश था। यह कुत्ता मेरे रास्ते में बैठा हुआ था इसलिए मैंने बेवजह निराशा और गुस्से में इस कुत्ते के सिर पर मार दिया। आप मुझे जो भी सजा देना चाहें, दे सकते हैं।’
श्रीराम सुनते हैं भिखारी की पूरी बात
भगवान श्रीराम ने पूरी बात सुनी और फिर बात अपने मंत्रियों और दरबारियों के सामने रखी। भिखारी को क्या सजा दिलानी चाहिये यह पूछने लगे। इस सबने कहा कि यह अलग मामला है। इसमें एक मनुष्य है औऱ एक जानवर। इसलिए इस समस्या पर सामान्य कानून लागू नहीं होंगे। इसलिए राजा होने के नाते यह आपका अधिकार है कि आप फैसला सुनाएं। फिर राम ने कुत्ते से पूछा, ‘तुम क्या कहते हो, क्या तुम्हारे पास कोई सुझाव है?’
कुत्ता बोला, ‘हां, मेरे पास इस व्यक्ति के लिए एक उपयुक्त सजा है।’ ‘वह क्या, बताओ?’ तो कुत्ता बोला, ‘इसे कालिंजर मठ का मुख्य महंत बना दीजिए।’ राम ने कहा, ‘तथास्तु।’ और भिखारी को प्रसिद्ध कालिंजर मठ का मुख्य महंत बना दिया गया। राम ने उसे एक हाथी दिया, भिखारी इस सजा से बहुत प्रसन्न होते हुए हाथी पर चढ़कर खुशी-खुशी मठ चला गया।
फैसला सुनाया जाता है
दरबारियों ने कहा, ‘यह कैसा फैसला है? क्या यह कोई सजा है? वह आदमी तो बहुत खुश है।’ फिर राम ने कुत्ते से पूछा, ‘क्यों नहीं तुम ही इसका मतलब बताते?’ कुत्ते ने कहा, ‘पूर्वजन्म में मैं कालिंजर मठ का मुख्य महंत था और मैं वहां इसलिए गया था क्योंकि मैं अपने आध्यात्मिक कल्याण और उस मठ के लिए सच्चे दिल से समर्पित था, जिसकी बहुत से दूसरे लोगों के आध्यात्मिक कल्याण में महत्वपूर्ण भूमिका थी। मैं वहां खुद के और हर किसी के आध्यात्मिक कल्याण के संकल्प के साथ वहां गया और मैंने इसकी कोशिश भी की। मैंने अपनी पूरी कोशिश की।
मगर जैसे-जैसे दिन बीते, धीरे-धीरे दूसरे छिटपुट विचारों ने मुझे प्रभावित करना शुरू कर दिया। मुख्य महंत के पद के साथ आने वाले नाम और ख्याति ने कहीं न कहीं मुझ पर असर डालना शुरू कर दिया। कई बार मैं नहीं, मेरा अहं काम करता था। कई बार मैं लोगों की सामान्य स्वीकृति का आनंद उठाने लगता था। लोगों ने मुझे एक धर्मगुरु की तरह देखना शुरू कर दिया।
मैं धर्मगुरु नहीं हूं…
अपने अंदर मैं जानता था कि मैं धर्मगुरु नहीं हूं मगर मैंने किसी धर्मगुरु की तरह बर्ताव करना शुरू कर दिया और उन सुविधाओं की मांग करना शुरू कर दिया, जो आम तौर किसी धर्मगुरु को मिलनी चाहिए। मैंने अपने संपूर्ण रूपांतरण की कोशिश नहीं की मगर उसका दिखावा करना शुरू कर दिया और लोगों ने भी मेरा समर्थन किया। ऐसी चीजें होती रहीं और धीरे-धीरे अपने आध्यात्मिक कल्याण के लिए मेरी प्रतिबद्धता घटने लगी और मेरे आस-पास के लोग भी कम होने लगे। कई बार मैंने खुद को वापस लाने की कोशिश की मगर अपने आस-पास जबर्दस्त स्वीकृति को देखते हुए मैं कहीं खुद को खो बैठा।
इस भिखारी सर्वथासिद्ध में गुस्सा है, अहं है, वह कुंठित भी है, इसलिए मैं जानता हूं कि वह भी खुद को वैसा ही दंड देगा, जैसा मैंने दिया था। इसलिए यह उसके लिए सबसे अच्छी सजा है, उसे कालिंजर मठ का मुख्य महंत बनने दीजिए।’ प्राचीन काल में इस देश के उत्तरी भाग में एक बहुत प्रसिद्ध मठ था जिसे कालिंजर के नाम से जाना जाता था। कालिंजर मठ उस समय का एक प्रसिद्ध मठ था। यह रामायण काल से पहले की बात है। रामायण का मतलब है, लगभग 5000 साल पहले। राम के आने से पहले भी कालिंजर मठ का खूब नाम था।
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