दुर्गा पूजा क्यों मनाया जाता है, क्या है इसका इतिहास – Durga Puja in hindi

हिंदू धर्म में durga puja का बहुत महत्व है। यह त्योहार सबसे ज्यादा पश्चिम बंगाल के कोलकाता (Durga Puja in Kolakata) में मनाया जाता है। Kolkata Durga Puja में बड़े बड़ें पंडाल सजा कर विजयदशमी से 4-5 दिन पहले से ही दुर्गा पूजा के भजन (Durga Puja Songs) के साथ रात भर मनाते है।

दुर्गा उत्‍सव क्‍यों मनाया जाता है – Why Durga Puja is celebrated

आपको बता दें कि हिंदू मान्‍यता के अनुसार देवी दुर्गा ने महिषासुर नाम के राक्षस का वध किया था। इसीलिए बुराई पर अच्‍छाई के प्रतीक के रूप में नवदुर्गा की पूजा की जाती है। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि साल के इन्‍हीं नौ महीनों में देवी मां अपने मायके आती हैं। ऐसे में इन नौ दिनों को durga puja के रूप में मनाया जाता है।

दुर्गा पूजा की कथा (कहानी) – Durga Puja History

दुर्गा पूजा (durga puja 2021 navratri ) बुराई पर अच्छाई की जीत का त्यौहार है। महिषासुर नाम का एक राक्षस था। उसने तपस्या करके भगवान ब्रह्मा से अमर होने का वरदान पा लिया था। महिषासुर की भक्ति से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे कई वरदान दिए। अमरत्व की जगह उन्हें यह वरदान दिया कि उसकी मृत्यु स्त्री के हाथों होगी। ब्रह्मा जी से यह वरदान पाकर महिषासुर काफी प्रसन्न हो गया। सोचने लगा की किसी भी स्त्री में इतनी ताकत नहीं है, जो उसके प्राण ले सकें।

इसी विश्वास के साथ महिषासुर ने अपनी असुर सेना के साथ देवों के विरूद्ध युद्ध छेड़ दिया। जिसमें देवों की हार हो गई। अतः सभी देवगण मदद के लिए त्रिदेव यानी भगवान शिव, ब्रह्मा और विष्णु के पास पहुंचें। तीनों देवताओं ने अपनी शक्ति से देवी दुर्गा को जन्म दिया। जिसके बाद दुर्गा ने राक्षस महिषासुर से युद्ध कर उसका वध किया। इस तरह से महिषासुर एक स्त्री के हाथों मारा गया।

भारत में अलग अलग तरीके से मनाई जाती है Durga Puja

वैसे तो दुर्गा पूजा पूरे भारत के अलग अलग हिस्सों में अलग अलग तरीकों से मनाई जाती है। जैसे कोलकाता (durga puja at kolkata) में यह सबसे ज्यादा मनाई जाता है। दुर्गा पूजा असम, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, मणिपुर, ओडिशा, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल (durga puja of kolkata) में व्यापक रूप से मनाया जाता है। यहां इस समय पांच-दिन की वार्षिक छुट्टी रहती है। बंगाली हिन्दू और आसामी हिन्दुओं का बाहुल्य वाले क्षेत्रों पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा में यह वर्ष का सबसे बड़ा उत्सव (durga puja festival) माना जाता है।

बंगाल में लोग रंग बिरंगे कपड़े पहनते हैं। वहां लाल पाड़ की साड़ी (durga puja saree) पहनते हैं। शादी शुदा महिलाओं के साथ साथ कन्याओं भी स्पेशल साड़ी (saree for durga puja) पहन कर पैरों में आलती लगा कर दुर्गा पूजा में भाग लेती हैं। बंगाल में Durga Puja के दौरान सिंदूर खेला की रस्म भी होती है। साथ ही durga puja dance भी करते हैं।

Durga Puja Pandal

इस दौरान कई जगह पर जहां बड़े बड़े Durga Puja Pandal नहीं लगाए जा सकते हैं वहां Durga Puja Mandap लगाकर Durga Puja Murti स्थापित की जाती है। औऱ रात भर Durga Puja Bhajan और Durga Puja Aarti की जाती हैं।

दुर्गा पूजा में पंडाल आकर्षण का केंद्र रहते हैं। भारत समेत दुनिया के अलग-अलग हिस्‍सों में देवी मां के भव्‍य पंडाल स्‍थापित किए जाते हैं। लोग अपने परिवार, रिश्‍तेदारों और दोस्‍तों के साथ एक पंडाल से दूसरे पंडाल (Pandal Hopping) जाते हैं। षष्‍ठी के दिन मां दुर्गा की प्रतिमा पंडालों में स्‍थापित की जाती है, जबकि सप्‍तमी को मां के पट भक्‍तों के लिए खोल दिए जाते हैं।

दुर्गा पूजा के विभिन्न नाम – Durga Puja Names in Hindi

बंगाल असम, ओडिशा में दुर्गा पूजा को अकालबोधन (“दुर्गा का असामयिक जागरण”), शरदियो पुजो (“शरत्कालीन पूजा”), शरोदोत्सब(“पतझड़ का उत्सव”), महा पूजो (“महा पूजा”), मायेर पुजो (“माँ की पूजा”) या केवल पूजा अथवा पुजो भी कहा जाता है। पूर्वी बंगाल (बांग्लादेश) में, दुर्गा पूजा को भगवती पूजा के रूप में भी मनाया जाता है। इसे पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, ओडिशा, दिल्ली और मध्य प्रदेश में दुर्गा पूजा भी कहा जाता है।

दिल्ली-एनसीआर (durga puja delhi) में पिछले कुछ वर्षों में, 250 से अधिक अलग-अलग पंडालों में दुर्गा पूजो आयोजित की जाती है। लेकिन इस बार कोरोना के कारण देश की राजधानी सहित पूरे भारत में durga puja pandals नहीं सज पाएंगे। दुर्गा पूजा को गुजरात, उत्तर प्रदेश, पंजाब, केरल और महाराष्ट्र में नवरात्रि के रूप में, कुल्लू घाटी, हिमाचल प्रदेश में कुल्लू दशहरा, मैसूर, कर्नाटक में मैसूर दशहरा, तमिलनाडु में बोमाई गोलू और आन्ध्र प्रदेश में बोमाला कोलुवू के रूप में भी मनाया जाता है।

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Bengali Durga Puja में चढ़ाई जाती है बकरे की बली

नवरात्री या दुर्गा पूजा के दौरान कुछ बंगाली लोग मांस मछली का भी सेवन करते हैं। हालांकि उत्तर भारत में नवरात्रि के दौरान मांस मंदिरा का सेवन के अलावा प्याज लेहसुन खाना भी वर्जित होता है। परंतु बंगाल में इसका प्रचलन है। इसके पीछे यह माना जाता है कि मां के भक्त माता को अपने मनपसंद भोजन कराना चाहते हैं। तो वह जो उनके यहां जो खाना सबसे फेमस होता हो उसका मां को भोग लगाते हैं। साथ ही कुछ लोग मां को बकरे की बलि भी देते हैं। लेकिन इन दिनों बंगाली ब्राह्मण विधवा स्‍त्री को पारंपरिक सात्‍विक भोजन करने का रिवाज है।

महालय क्या है, महालय का महत्व – Durga Puja Mahalay

हिंदू मान्यता के अनुसार मां दुर्गा का भगवान शिव से विवाह होने के बाद जब वह अपने मायके लौटी थीं। इस आगमन के लिए खास तैयारी की गई। इस आगमन को महालया के रूप में मनाया जाता है। जबकि बांग्ला मान्यता के अनुसार महालया के दिन मां की मूर्ति बनाने वाले मूर्तिकार, मां दुर्गा की आंखों को बनाते हैं। इसे चक्षुदान भी कहते है। इसका मतलब है आंखें प्रदान करना। सौर आश्विन के कृष्णपक्ष का नाम महालया है। इस पक्ष के अमावस्या तिथि को ही महालया कहा जाता है। माता दुर्गा के आगमन के इस दिन को महालया के रूप में भी मनाया जाता है। महालया के अगले दिन से मां दुर्गा के नौ दिनों की पूजा के लिए कलश स्थापना की जाती है। इसके साथ ही देवी के नौ रूपों की पूजा के साथ नवरात्रि की पूजा शुरू हो जाती है।

महालय के एक महीन बाद होगी दुर्गा पूजा

आम तौर पर महालया के दूसरे दिन यानी पितर तर्पण के बाद से देवी पाठ की शुरुआत हो जाती है। हिन्दू शास्त्रों में दुर्गापूजा आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में होती है। इस बार दो अश्विन माह होंगे। एक शुद्ध तो दूसरा पुरुषोत्तम यानी अधिक मास।

कैसे मनाया जाता है दुर्गा पूजा का त्‍योहार – How Durga Puja is Celebrated

दुर्गा पूजा की शुरुआत नवरात्रि से एक दिन पहले durga puja mahalaya से होती है। महलाया अमावस्‍या की सुबह सबसे पहले पितरों का तर्पण कर उन्‍हें विदाई दी जाती है। durga puja shashthi के दिन पंडालों में मां दुर्गा, सरस्‍वती, लक्ष्‍मी, कार्तिक, भगवान गणेश और महिषासुर की प्रतिमाओं को स्‍थापित किया जाता है। मुख्य रुप से kolkata durga puja pandal में यह durga puja vidhi vidhan से किया जाता है। षष्‍ठी के दिन घर की महिलाएं खासकर माताएं अपने बच्‍चों की मंगल कामना के लिए व्रत रखती हैं।

चढ़ाए जाते हैं विभिन्न पकवान

durga puja saptami के दिन काफी रौनक देखने को मिलती है। इस दिन मां दुर्गा को उनका पसंदीदा भोग लगाया जाता है। जिसमें खिचड़ी, पापड़, सब्‍जियां, बैंगन भाजा और रसगुल्‍ला शामिल है। durga puja ashtami के दिन भी देवी मां की आराधना की जाती है और उन्‍हें कई तरह के पकवान चढ़ाए जाते हैं। durga puja navami की रात मायके में दुर्गा मां की आखिरी रात होती है। इसके बाद दशमी यानी कि दशहरे के दिन सुबह सिंदूर खेला के बाद durga puja visarjan कर विदाई दी जाती है।

दुर्गा पूजा का व्रत कैसे रखें (Durga Puja Vidhi)

बंगाल में दूर्गा पूजा (durga puja in west bengal) वाले दिन लोग व्रत रखते हैं। इस दिन मां को मानने वाले भक्त दुर्गा अंजली होने तक उपवास करते हैं। व्रत फल और मिठाई खाकर तोड़ा जाता है। व्रत खोलने के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शुरुआत होती है। दोपहर में मां दुर्गा को पारंपरिक भोग लगाया जाता है।

इसमें खिचड़ी, पापड़, मिक्स वेजिटेबल, टमाटर की चटनी, बैंगन भाजा के साथ रसगुल्ला भोग लगाया जाता है। अष्टमी वाले दिन की पूजा को बहुत महत्व दिया जाता है। इस दिन खिचड़ी की जगह चावल, चना दाल, पनीर की सब्जी का भोग लगाते हैं। आप मिक्स वेजिटेबल, बैंगन भाजा, टमाटर की चटनी, पापड़, राजभोग और पेयश भोग में चढ़ाया जाता है।

मां दुर्गा जी की आरती (Durga Puja Aarti)

जय अम्बे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति ।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥टेक॥

मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय॥

कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥जय॥

केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी ।
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय॥

कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥जय॥

शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय॥

चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥जय||

भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥जय॥

कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥जय॥

श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥जय॥

 

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